prajaapaala-prabhaa

प्रजापाल वराह १६+ ( श्रुतकीर्ति - पुत्र, सुप्रभ नाम, महातपा ऋषि से मोक्ष विषयक संवाद ), ३६( प्रजापाल राजा द्वारा गोविन्द की स्तुति, ब्रह्म में लय ), लक्ष्मीनारायण १.५३३.२( चिन्तामणि से उत्पन्न तथा प्रजापाल उपनाम वाले राजा सुप्रभ को महातपा मुनि द्वारा शरीर के तत्त्वों के दिव्य रूपों का वर्णन ) prajaapaala

 

 

प्रज्ञप्ति कथासरित् ५.२.२५८( प्रज्ञप्तिकौशिक नामक गुरु द्वारा अशोकदत्त व विजयदत्त भ्राताद्वय को उनके विद्याधरत्व का बोध कराना तथा विद्या प्रदान करना ), ९.१.४५( प्रज्ञप्ति नामक विद्या द्वारा अलंकारवती कन्या के पति के विषय में भविष्यवाणी ), १६.१.५२( नरवाहनदत्त द्वारा प्रज्ञप्ति विद्या से स्वप्न के फल की पृच्छा ) prajnapti

 

प्रज्ञा पद्म २.८.६०( प्रज्ञा की परिभाषा, प्रज्ञा की माता संज्ञा का उल्लेख ), २.१२.९५( दुर्वासा के समक्ष प्रकट प्रज्ञा का रूप ), २.५६.३१( प्रज्ञा द्वारा शकुनी रूप धारण करके कृकल - पत्नी सुकला को शकुन रूप में पति के आगमन की सूचना देना ), २.९७.९९( राजा सुबाहु को स्वमांस भक्षण करते देख प्रज्ञा व श्रद्धा के हास्य का कथन ), ब्रह्म १.११७.४४( उमा - महेश्वर संवाद के अन्तर्गत प्रज्ञा प्रापक कर्मों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५३( प्रज्ञ : अमिताभ संज्ञक देवों के गण में से एक ), २.३.१२.३३( प्रज्ञार्थी को पिण्ड जल में देने का निर्देश ), लिङ्ग १.७०.२१( प्रज्ञा की निरुक्ति ), वायु ४.३६/१.४.३४( प्रज्ञा की परिभाषा : ग्रहों को जन्म देने वाली ), स्कन्द ४.१.२९.११०( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), महाभारत शान्ति २३७.३( प्रज्ञा द्वारा धर्म के प्रवृत्ति लक्षण अथवा निवृत्ति लक्षणात्मक होने का निश्चय ), २७३.१३( प्रज्ञा द्वारा कुशल धर्म को प्राप्त करने का कथन ), २९७.२१( प्रज्ञावान् के द्विजों से श्रेष्ठ होने व आत्मसम्बुद्धों से हीन होने का कथन ), ३०१.६५( दुःख रूपी जल में व्याधि, मृत्यु रूप ग्राह, तम: कूर्म व रजो मीन आदि को प्रज्ञा से तरने का कथन ), आश्वमेधिक २७.१५( प्रज्ञा वृक्ष पर मोक्ष फल लगने का कथन ), ४३.३४( प्रज्ञा द्वारा मन के ग्रहण का उल्लेख ), महाप्रस्थानिक २.१०(सहदेव द्वारा स्वयं को प्राज्ञ मानने के कारण सहेदव का स्वर्ग से पूर्व पतन),  योगवासिष्ठ ३.२३+ ( प्रज्ञा का आकाशगमन ), ५.१२.३४( प्रज्ञा का चिन्तामणि के रूप में उल्लेख ), ६.१.१२०.१( प्रज्ञा वृद्धि : योग की प्रथम भूमिका ), लक्ष्मीनारायण २.२२१( बालकृष्ण द्वारा अन्त:प्राग~ नगरी की प्रजा को प्रज्ञा के महत्त्व का उपदेश ), २.२२४.३६( प्रज्ञा पुराणी द्वारा शोधन के महत्त्व का कथन ), २.२४५.४९( जीव रथ में प्रज्ञा को मार्ग बनाने का निर्देश ), ३.७.७९( राजा थुरानन्द के गर्व के खण्डन के लिए श्रीहरि का सम्प्रज्ञान द्विज के पुत्र रूप में जन्म लेने का वर्णन ), ३.८.१( लक्ष्मी की अवतार ज्योत्स्ना कुमारिका द्वारा स्वयंवर में द्विज प्राज्ञ नारायण का वरण, द्विज का अन्य राजाओं से युद्ध आदि ), ३.१२.५२( प्राज्ञायन ऋषि का भक्ति व धर्मव्रत विप्र के पुत्र के रूप में जन्म ), ३.१३.१+ ( प्रज्ञात नामक वत्सर में पृथिवी पर ब्रह्मचर्य की पराकाष्ठा का वर्णन, सती सुदर्शनी द्वारा ब्रह्मचर्य में विघ्नकारकों को शाप से स्त्री बनाना, श्रीहरि द्वारा स्त्रीपुं नारायण अवतार लेकर पुरुषों को स्त्रीत्व से मुक्त करना ), ३.१४.४३( अप्रज्ञात वत्सर में मानवों को माकरासुर के कोप से त्राण देने के लिए श्रीहरि के जल नारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन ), ३.५१.१२१( राजा सुबाहु द्वारा स्वर्ग में स्वशव भक्षण पर श्रद्धा व प्रज्ञा स्त्रियों द्वारा राजा के उपहास का कथन ), कथासरित् ८.२.२४४( सूर्यप्रभ के सचिव प्रज्ञाढ्य द्वारा सूर्यप्रभ को राज्ञी के आगमन की सूचना देने का वृत्तान्त ), ८.२.३७७( वातापि दैत्य के प्रज्ञाढ्य मन्त्री रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ८.७.२२( प्रज्ञाढ्य द्वारा युद्ध में चन्द्रगुप्त के वध व चन्द्रमा से युद्ध का कथन ), १२.५.३१९( प्रज्ञा पारमिता के द्रष्टान्त के रूप में सिंहविक्रम चोर द्वारा काल के वंचन की कथा ), १२.२२.४( मन्त्री प्रज्ञासागर के पुत्र के स्त्री रूप धारी द्विज - पुत्र से विवाह का वृत्तान्त ), १२.३५.१३४( मृगाङ्कदत्त राजा के मन्त्री प्रज्ञाकोष द्वारा स्वामी का संदेश राजा कर्मसेन तक पहुंचाना ), द्र. सुप्राज्ञ prajnaa

 

प्रणद्ब्रह्म लक्ष्मीनारायण ३.९५.७९( साधु सेवा के महत्त्व के संदर्भ में कश्यप व अदिति द्वारा प्रणद्ब्रह्म ऋषि की सेवा का वृत्तान्त, प्रणद्ब्रह्म ऋषि के वरदान से कश्यप व अदिति का देवों के माता - पिता बनना ) pranadbrahma

 

प्रणव मत्स्य ८५.६( प्रणव के सब मन्त्रों में प्रवण होने का उल्लेख ), शिव १.१७.५( प्रणव की निरुक्ति : प्रकर्षेण नयति इति तथा अन्य निरुक्तियां ; प्रणव के स्थूल व सूक्ष्म भेद ), स्कन्द ४.२.५७.७७( प्रणव गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.३८( प्रणव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) pranava

 

प्रणाम गरुड ३.२९.६७(प्रणाम काल में शेषांतस्थ विष्णु के ध्यान का निर्देश),  स्कन्द ५.३.१५७.१३( पूजा से रुद्र, जप व होम से दिवाकर तथा प्रणिपात से शङ्खचक्र गदा पाणि के तुष्ट होने का उल्लेख )

 

प्रणिधि पद्म ७.४.२१( प्रयाग माहात्म्य के प्रसंग में श्वपच द्वारा पद्मावती - पति प्रणिधि वैश्य का रूप धारण, स्वर्ग गमन ), स्कन्द ४.१.२९.१११( गङ्गा सहस्रनामों में से एक )

 

प्रणीता अग्नि ३०९.३२( प्रणीता आदि ५ मुद्राओं का कथन - मुद्रा वक्ष्ये प्र्णीताद्याः प्रणीताः पञ्चधा स्मृताः । ग्रथितौ तु करौ कृत्वा मध्येऽङ्गुष्ठौ निपातयेत् ।।  ), नारद १.५१.२८( यज्ञ के प्रणीता नामक पात्र को तीर्थों, सरिताओं व समुद्रों के जल से पूरित करने का निर्देश - यानि कानि च तीर्थानि समुद्राः सरितस्तथा। प्रणीतायां समासन्नात्तस्मात्तां पूरयेज्जलैः। ), ब्रह्म २.९१.५९( ब्रह्मा के यज्ञ में प्रणीता पात्र जल से प्रणीता नदी की उत्पत्ति - प्रणीतायाः प्रणयनं मन्त्रैश्चाकरवं ततः। प्रणीतोदकमप्येतत्प्रणीतेति नदी शुभा।। ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८( प्रणीत : मरीचि संज्ञक देवगण के १२ देवों में से एक - दधिक्रावा विपक्वश्च प्रणीतो विजयो मधुः ॥ उतथ्योत्तमकौ द्वौ तु द्वादशैते मरीचयः । ) praneetaa/ pranitaa

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प्रतपन वा.रामायण ६.४३.१३( रावण - सेनानी, नल से युद्ध )

 

प्रतर्दन ब्रह्म १.९.४९( दिवोदास व दृषद्वती - पुत्र, वत्स व भर्ग - पिता, प्रतर्दन द्वारा शत्रुओं से वाराणसी की पुन: प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.२७( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), मत्स्य ४१.१३( प्रतर्दन द्वारा ययाति को स्वपुण्य दान का प्रस्ताव, शिबि, अष्टक आदि से स्वर्ग गमन की प्रतिस्पर्द्धा का कथन ), वराह ११.९४( राजा दुर्जय की सेना से युद्ध करने वाले १५ दैत्य सेनानायकों में से एक ), ११.९७( सुमुख/सुवेद के प्रतर्दन से युद्ध का उल्लेख ), वायु ६२.२४/२.१.२४( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), ६२.२८/ २.१.२८( प्रतर्दन/प्रमर्दन गण के १२ देवों के नाम ), ९२.६४/२.३०.६४( दृषद्वती व दिवोदास - पुत्र, वत्स व गर्ग - पिता, वंश का वर्णन ), विष्णु ३.१.१४( औत्तम मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक ), ४.८.११( धन्वन्तरि - पुत्र, अन्य नाम वत्स, शत्रुजित्, ऋतध्वज, कुवलयाश्व ), स्कन्द १.२.२.७३( प्रतर्दन द्वारा ब्राह्मण को नयन दान का उल्लेख ), १.२.१३.१७९( शतरुद्रिय प्रसंग में प्रतर्दन द्वारा बाण लिङ्ग की हिरण्यभुज नाम से पूजा ), हरिवंश १.२९.७२( दिवोदास व दृषद्वती - पुत्र, वत्स व भार्ग-पिता, वंश वर्णन ), वा.रामायण ७.३८.१६(राम द्वारा काशिराज प्रतर्दन को विदाई ), लक्ष्मीनारायण २.२४४.७१( प्रतर्दन द्वारा द्विज हेतु नेत्र दान का उल्लेख ), ३.७४.५५( काशिराज प्रतर्दन द्वारा ब्रह्मिष्ठ को तनु दान से अतुल कीर्ति व मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख ), ३.९२.४( प्रतर्दन द्वारा भृगु से हैहय क्षत्रियों को सौंपने की मांग पर भृगु द्वारा क्षत्रियों को विप्रों में बदलने का कथन ) pratardana

 

प्रताप मत्स्य २४५.३२( प्रताप : बलि के सेनापति दैत्यों में से एक ), स्कन्द ३.१.९( प्रतापमुकुट नृप द्वारा अशोकदत्त के पराक्रम से तुष्ट होकर मदनलेखा कन्या का विवाह ), कथासरित् ५.२.२६८( प्रतापमुकुट : अशोकदत्त का श्वसुर ), १०.२.५( प्रतापादित्य : राजा विक्रमसिंह को घेरने वाले ५ राजाओं में से एक ), १२.८.६१( राजा प्रतापमुकुट के पुत्र वज्रमुकुट का वृत्तान्त ) prataapa/ pratap

 

प्रतापसेन कथासरित् ९.४.२२७( राजा चमरवाल द्वारा राजा प्रतापसेन को जीतने का वृत्तान्त ), १०.१०.१६९( प्रतासेन द्वारा तप से २ विद्याधर पुत्र प्राप्त करने का कथन ),

 

प्रतापाग्र्य पद्म ५.२३.२( राजा, शत्रुघ्न - सेनानी, दमन से युद्ध में मृत्यु ), ५.६७.४०( प्रतीति - पति )

 

प्रतापी देवीभागवत २.८.४३( प्रमति - भार्या, रुरु - माता )

 

प्रति भागवत ९.१७.१६( कुश - पुत्र, सञ्जय - पिता, क्षत्रवृद्ध/आयु वंश ), वायु ६७.१२७/२.६.१२७( प्रतिकृत् : चौथे गण के मरुतों में से एक ), ६७.१२८/२.६.१२८( प्रतिदृक्ष : पांचवें/सातवें? गण के मरुतों में से एक ), विष्णु ४.५.२७( प्रतिक : मनु - पुत्र, कृतरथ - पिता, निमि/जनक वंश ) prati

 

प्रतिक्षत्र ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३९( शमी - पुत्र, स्वयंभोज - पिता, सत्यक वंश ), मत्स्य ४४.८०( शमी - पुत्र, प्रतिक्षेत्र? - पिता ), विष्णु ४.९.२५( क्षत्रवृद्ध - पुत्र, सञ्जय - पिता ), ४.१४.२३( शमी - पुत्र, स्वयंभोज - पिता, अनमित्र/सत्यक वंश ) pratikshatra

 

प्रतिग्रह पद्म १.१९.२६१( हेमपूर्ण उदुम्बर ग्रहण की कथा के संदर्भ में प्रतिग्रह के विषय में जमदग्नि की प्रतिक्रिया का कथन ), १.३६.२७( राम का अगस्त्य आश्रम में गमन, अगस्त्य द्वारा राम से हस्ताभरण के प्रतिग्रहण का आग्रह आदि, हस्ताभरण प्राप्ति के संदर्भ में अगस्त्य द्वारा राजा श्वेत से आभरण की प्रतिग्रह रूप में प्राप्ति की कथा ), ६.१२७.१३६( तीर्थों में प्रतिग्रह दोष से द्विज का राक्षस आदि योनियों में जन्म ), भागवत ११.१७.४०( एकमात्र ब्राह्मण की वृत्ति के रूप में प्रतिग्रह का उल्लेख, प्रतिग्रह के दोषों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१( विभिन्न द्रव्यों के प्रतिग्रह की विधि ), महाभारत शान्ति २९२.३( प्रतिग्रह की अपेक्षा दान की श्रेष्ठता का कथन ) pratigraha

 

प्रतिज्ञा पद्म ४.२६( प्रतिज्ञा/शपथ पालन तथा न पालन करने के फल, वीरविक्रम शूद्र द्वारा कन्या विवाह में प्रतिज्ञा पालन से कृष्ण के लोक की प्राप्ति का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.८( प्रतिज्ञा पारण में परशुराम या राम की पूजा ), स्कन्द १.२.३३.५०( कुमार द्वारा स्थापित प्रतिज्ञेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ) pratijnaa

 

प्रतिद्वन्द्वी महाभारत उद्योग ५७.१२( महाभारत युद्ध में कौरव व पाण्डव पक्ष के परस्पर प्रतिद्वन्दी योद्धाओं के नाम ), भीष्म ४५( परस्पर युद्ध करने वाले कौरव व पाण्डव पक्ष के योद्धाओं के नाम ),

 

 

प्रतिपदा अग्नि १७६( चैत्र, आश्विन्, कार्तिक, मार्गशीर्ष में प्रतिप्रदा व्रत में ब्रह्मा व अग्नि की पूजा ), गरुड १.११६.३( प्रतिपदा को वैश्वानर, कुबेर, ब्रह्मा, श्री, अश्विनौ की पूजा - वैश्वानरः प्रतिपदि कुबेरः पूजितोऽर्थदः । पोष्य ब्रह्मो प्रतिपद्यर्चितः श्रीस्तथाश्विनी ॥  ), १.१२९.१( प्रतिपदा को शिखि व्रत की संक्षिप्त विधि ), नारद १.११०.५( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा द्वारा जगत की सृष्टि, ब्रह्मा की पूजा, सौरि व्रत, विद्या व्रत ), १.११०.१४( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर वृक्ष की पूजा ), १.११०.१९( नभः/आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को व्रत, शिव पूजा ), १.११०.२३( भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को महत्तम/ मौन व्रत, शिव पूजा ), १.११०.२७( आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा को अशोक वृक्ष की पूजा, नवरात्र का आरम्भ ), १.११०.३५( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र, अन्नकूट कर्म), १.११०.३८( मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन व्रत, विष्णु पूजा, अग्नि की प्रतिमा का दान ), १.११०.४०( पौष शुक्ल प्रतिपदा को सूर्य पूजा ), १.११०.४१( माघ शुक्ल प्रतिपदा को अग्नि रूपी महेश्वर की पूजा ), १.११०.४२( फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा को दिगम्बर शिव की पूजा ), १.११०.४४( वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को विष्णु की पूजा ), १.११०.४५( आषाढ शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा व विष्णु की पूजा ), पद्म ६.१२२.२८( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अलक्ष्मी का निष्कासन, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली, बलि पूजा, कौमुदी उत्सव आदि कृत्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३७( प्रतिपदा के सब सन्धियों में आदि होने का उल्लेख - अन्वाधानक्रिया यस्मात्क्रियते पर्वसंधिषु ।।तस्मात्तु पर्वणामादौ प्रतिपत्सर्वसंधिषु ।। ), भविष्य १.१७+ ( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा की पूजा ), ४.१०( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर व्रत ), मत्स्य १४१.३५( पूर्णमास व व्यतीपात द्वारा परस्पर दर्शन से प्रतिपदा के घटित होने का कथन? - पूर्णमासव्यतीपातौ यदा पश्येत्परस्परम्। तौ तु वै प्रतिपद्यावत् तस्मिन्‌ काले व्यवस्थितौ।। ), वराह ५६ (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन्य व्रत की विधि व माहात्म्य – अग्निरूप विष्णु का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.११( चैत्र प्रतिपदा को ब्रह्मा तथा काल के अवयवों की पूजा का निर्देश ), स्कन्द २.४.१०( द्यूत प्रतिपदा, बलि राज्य प्रतिपदा, गौ प्रतिपदा के कृत्य ), ४.२.५२.८७( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान - ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे प्राप्य प्रतिपदं तिथिम् ।।दशाश्वमेधिके स्नात्वा मुच्यते जन्मपातकैः ।। ), ५.३.२६.१०२( प्रतिपदा को नारी द्वारा ब्राह्मण को इन्धन दान का फल - प्रतिपत्सु च या नारी पूर्वाह्णे च शुचिव्रता ॥ इन्धनं ब्राह्मणे दद्यात्प्रीयतां मे हुताशनः । ), ६.६०.११( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को नरादित्य की पूजा ), वा.रामायण ०.२( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को रामायण का नवाह पारायण, सुदास की राक्षसत्व से मुक्ति ), ०.३( माघ शुक्ल प्रतिपदा को रामायण श्रवण से मालती शूद्र का राजा बनना ), ०.४( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रामायण का नवाह पारायण, कलिक व्याध की मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.२६६( १२ मासों की शुक्ल प्रतिपदाओं में करणीय व्रतों का वर्णन ), १.३०८( अधिक मास द्वितीय पक्ष प्रतिपदा को व्रतादि से सहस्राक्ष राजा द्वारा वैराज पद प्राप्ति तथा ब्रह्मा के मूल नाभि कमल बनने का वृत्तान्त ), २.२५.१( फाल्गुन/माघ शुक्ल प्रतिपदा को दोला महोत्सव ), २.१९७.७४+ ( भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा? को श्रीहरि द्वारा काष्ठयान नृप की नगरी तुन्नवाया में आगमन, उपदेश आदि का वृत्तान्त ), २.२१७.१०१( आश्विन् कृष्ण प्रतिपदा को श्रीहरि द्वारा कोटीश्वर नृप के एकद्वार राष्ट्र में गमन तथा उपदेशादि का वृत्तान्त ), २.२३२.१( आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा को श्रीहरि के राजा रायनृप की नगरी लापलात्री पुरी में आगमन आदि का वृत्तान्त ), ३.६४.२( प्रतिपदा तिथि को धनद/कुबेर रूपी कृष्ण की पूजा का निर्देश - प्रतिपद्धनदस्योक्ता तत्र पूज्योऽहमेव ह । कुबेरमूर्तिरूपो वै धनदोऽहं भवामि हि ।। ), ३.१०३.२( शुक्ल प्रतिपदा को दान से सुभगप्रिय की प्राप्ति का उल्लेख - दत्वा दानानि प्रथमे दिने शुक्लस्य पद्मजे । श्राद्धभोजनयुक्तानि प्राप्नुयात् सुभगाः प्रियाः ।। ), ४.६०.५६( चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को व्याधों की मुक्ति का वृत्तान्त ) pratipadaa


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प्रतिप्रस्थाता मत्स्य १६७.८ ( विष्णु के पृष्ठ से प्रतिप्रस्तार ऋत्विज की उत्पत्ति का उल्लेख ), द्र. ऋत्विज pratiprasthaataa

 

प्रतिबाहु गर्ग ११.२( प्रतिबाहु राजा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु शाण्डिल्य से गर्ग संहिता का श्रवण ), भागवत ९.२४.१७( श्वफल्क व गान्दिनी की १४ सन्तानों में से एक, सत्यक वंश ), १०.९०.३८( वज्र - पुत्र, सुबाहु - पिता, अनिरुद्ध वंश ), वायु ९६.२५१/२.३४.२५१( वज्र - पुत्र, सुचारु - पिता ), विष्णु ४.१५.४१( वज्र - पुत्र, सुचारु - पिता, अनिरुद्ध वंश ), स्कन्द २.६.३.६६( वज्र द्वारा प्रतिबाहु को राज्य पर प्रतिष्ठित कर स्वयं को भागवत श्रवण में लीन करने का उल्लेख ) pratibaahu

 

प्रतिभा कथासरित् १.४.३२( पाणिनि - भार्या उपकोशा द्वारा स्व प्रतिभा से पातिव्रत्य भङ्ग करने वाले पुरुषों की पराभव करने का वृत्तान्त )

 

प्रतिभानु भागवत १०.६१.११( कृष्ण व सत्यभामा के १० पुत्रों में से एक )

 

प्रतिम ब्रह्माण्ड ३.४.१.७०( अप्रतिम : दशम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य अप्रतिम का उल्लेख )

 

प्रतिमा अग्नि ४३.११( प्रतिमा हेतु द्रव्य व विधि ), ४४( प्रतिमा के अवयवों के मान/लक्षण ), ४८( विष्णु के नारायण, माधव आदि २४ विग्रहों के लक्षण ), ४९( विष्णु के १० अवतारों की प्रतिमाओं के लक्षण ), ५०( चण्डी, दुर्गा, लक्ष्मी, नवदुर्गाओं, क्षमा आदि की प्रतिमाओं के लक्षण ), ५१( देव प्रतिमाओं के लक्षण, ग्रहों की प्रतिमाएं ), ५२( ६४ योगिनियों की प्रतिमाएं ), ५५+ ( प्रतिमा हेतु पिण्डिका लक्षण व महत्त्व ), ५८( प्रतिमा स्नान व शयन विधि आदि उपचार ), ६०( प्रतिमा स्थापना विधि ), ६७( प्रतिमा जीर्णोद्धार विधि ), ९६( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु अधिवासन व याग विधि ), १९१( शिव प्रतिमा ), नारद १.५६.७४६( प्रतिमा विकार/अपशकुन विचार ), २.५४.२१( विष्णु द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को अश्वत्थ वृक्ष से प्रतिमा निर्माण का आदेश ), पद्म ५.९५.७६( प्रतिमा के शैल आदि ८ प्रकारों के नाम ), ब्रह्म १.४७.९( विष्णु द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को अश्वत्थ वृक्ष से प्रतिमा निर्माण का आदेश ), भविष्य १.११४( आदित्य प्रतिमा स्नापन योग का वर्णन ), १.१२९( विश्वकर्मा द्वारा तेज के कर्तन से निर्मित सूर्य प्रतिमा की साम्ब द्वारा प्राप्ति ), १.१३१( सूर्य प्रतिमा हेतु दारु परीक्षा विधि ), १.१३२( सर्व देव प्रतिमाओं के लक्षण ), २.१.१२( देव प्रतिमा निर्माण विधि व प्रतिमाओं के लक्षण ), भागवत ११.२७.१२( शैली, दारुमयी आदि ८ प्रकार की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा व अर्चन विधि ), मत्स्य २५८( देव प्रतिमा के परिमाण का निरूपण ), २५९( प्रतिमा के लक्षण, मान आदि ), २६०( देव प्रतिमा ), २६१( प्रतिमा प्रतिष्ठा, पूजा आदि ), २६४( प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि व काल ), २६५( प्रतिमा अधिवासन आदि की विधि ), २६६( प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), २६७( प्रतिमा के अभिषेक की विधि ), वराह १८१( मधूक काष्ठ से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठापन की विधि ), १८२( शैल प्रतिमा प्रतिष्ठापन विधि ), १८३( मृदा से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८४( ताम्र से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८५( कांस्य से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), १८६( रौप्य व सुवर्ण से निर्मित प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३८( प्रतिमा निर्माण हेतु प्रतिमा के शुभ - अशुभ लक्षण ), ३.९६( ज्योतिष काल अनुसार प्रतिमा प्रतिष्ठा का फल ), ३.९७( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु यजमान दीक्षा विधि ), लक्ष्मीनारायण २.११३.३७( कृष्ण की प्रतिमा तथा उसकी पूजा पद्धति के स्वरूप का वर्णन ), २.१४१.७१( प्रतिमा के दारु आदि प्रकार तथा उनके अङ्गों के मानों का वर्णन ), २.१४२.१( ४ वेदों तथा देवों की प्रतिमाओं के लक्षण ) pratimaa

 

प्रतिमेधा ब्रह्माण्ड १.२.३६.६०( सुमेधा संज्ञक देवगण में से एक )

 

प्रतिरूपा भागवत ५.२.२३( मेरु - कन्या, किम्पुरुष - पत्नी )

 

प्रतिलोक योगवासिष्ठ ६.२.६३.३०( प्रत्याकाश, प्रतिसंसार, प्रतिलोक आदि का वर्णन ),

 

प्रतिलोम कथासरित् १२.७.१३३( गङ्गा द्वारा भीमभट को प्रदत्त प्रतिलोम - अनुलोम विद्या की प्रकृति का कथन ),

 

प्रतिवाह ब्रह्माण्ड २.३.७१.११२( श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.१७( प्रतिबाहु : श्वफल्क व गान्दिनी के अक्रूर - प्रमुख पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१११/२.३४.१११( श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१४.९( उपमद्गु के पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश ) prativaaha

 

प्रतिविन्ध्य भागवत ९.२२.२९( युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ), मत्स्य ५०.५१( युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ), वायु ९९.२४६/२.३७.२४२( श्रुतिविद्ध : युधिष्ठिर व द्रौपदी - पुत्र ) prativindhya

 

प्रतिव्यूह वायु ९९.२८२/२.३७.२७८( वत्सव्यूह - पुत्र, दिवाकर - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) prativyuuha

 

प्रतिव्योम भागवत ९.१२.१०( वत्सवृद्ध - पुत्र, भानु - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), मत्स्य २७१.५( वत्सद्रोह - पुत्र, दिवाकर - पिता, बृहद्बल वंश ), विष्णु ४.२२.३( वत्सव्यूह - पुत्र, दिवाकर - पिता, वृहद्बल वंश ) prativyoma

 

प्रतिश्रव ब्रह्माण्ड ३.४.३४.३३( बारहवें आवरण के २६ रुद्रों में से एक ) pratishrava

 

प्रतिश्रुत भागवत ९.२४.५०( वसुदेव व शान्तिदेवा के पुत्रों में से एक )

 

प्रतिष्ठा अग्नि ६०( वासुदेवादि की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हेतु सार्वत्रिक प्रतिष्ठा विधि ), ६१( द्वार प्रतिष्ठा, प्रासाद प्रतिष्ठा विधि ), ६२( श्रीसूक्त द्वारा लक्ष्मी प्रतिष्ठा विधि ), ६३( सुदर्शन चक्र व पुस्तक प्रतिष्ठा विधि ), ६४( कूप, वापी, तडाग आदि की प्रतिष्ठा विधि ), ६५( सभा/शाला स्थापना विधि ), ६६( देवादि समुदाय की प्रतिष्ठा विधि ), ८५.१( प्रतिष्ठा कला शोधन विधि ), ९२( शिव, विष्णु प्रासाद आदि के विग्रहों के ५ प्रतिष्ठा भेद, वास्तु प्रतिष्ठा विधि ), ९५( लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु तिथि, नक्षत्र, ग्रह, लग्न विचार ), ९५.३३( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु संग्रहणीय द्रव्य ), ९७( शिव प्रतिष्ठा विधि ), ९८( गौरी प्रतिष्ठा विधान ), ९९( सूर्य प्रतिष्ठा विधान ), १००( द्वार प्रतिष्ठा विधान ), १०१( प्रासाद प्रतिष्ठा विधान ), १६६( ग्रहों की प्रतिष्ठा ), गरुड १.२१.६, १.४८( देव प्रतिष्ठा विधि ), देवीभागवत ९.१.१०७( पुण्य - पत्नी ), नारद १.५६.५२४( देव प्रतिष्ठा हेतु काल विचार ), १.९१.६९( तत्पुरुष शिव की तृतीय कला ), पद्म १.२७( तटाक, आराम, कूप आदि की प्रतिष्ठा की विधि ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११३( पुण्य - पत्नी ), भविष्य १.१३३( सूर्य प्रतिमा की प्रतिष्ठा के संदर्भ में प्रतिमा के अङ्गों में विश्वरूप की स्थिति का वर्णन ), १.१३७( सूर्य प्रतिष्ठा वर्णन के अन्तर्गत विशिष्ट कृत्यों का निर्देश ), २.२.१७( देव प्रतिष्ठा से पूर्व दिवस के कृत्यों का वर्णन ), २.२.१९( देवादि प्रतिष्ठा हेतु शुभ काल का विचार तथा विधि ), २.२.२०( गृह वास्तु, जलाशय प्रतिष्ठा ), २.३.१( आरामादि प्रतिष्ठा  विधि ), २.३.४( अश्वत्थ, पुष्करिणी, जलाशय प्रतिष्ठा ), २.३.५( वापी, ह्रद प्रतिष्ठा ), २.३.६+ ( वृक्ष प्रतिष्ठा ), २.३.१२+ ( मण्डप, यूप प्रतिष्ठा ), २.३.१४( पुष्पाराम प्रतिष्ठा ), २.३.१५( तुलसी प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठायोग्य-अयोग्य वृक्षों के नाम), २.३.१८( एकाह साध्य प्रतिष्ठा ), २.३.१९( काली आदि महाशक्तियों की प्रतिष्ठा ), ४.१९१( भुवन प्रतिष्ठा की विधि व माहात्म्य ), भागवत ११.२७.१३( ८ प्रकार की प्रतिमाओं की जीव मन्दिर में चल व अचल प्रतिष्ठा विषयक कथन ), मत्स्य ५८( तडाग, आराम, कूप, देवमन्दिर आदि की प्रतिष्ठा की विधि ), लिङ्ग २.४६+ ( लिङ्ग प्रतिष्ठा का माहात्म्य व विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.९७( प्रतिमा प्रतिष्ठा की विधि ), शिव ६.१५.२८( स्थिति/प्रतिष्ठा चक्र में वासुदेवादि चतुर्व्यूह आदि का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१४१.१( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु  देवालेयों के प्रकारों का वर्णन ), २.१४२.३०( मण्डप में प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु मण्डप प्रमाण, वेदिका प्रमाण, ७ दिशाओं में ध्वजाओं के लक्षण, कुण्ड विधि का वर्णन ), २.१४३( प्रतिष्ठा उत्सव के अन्तर्गत वास्तु पुरुष का वर्णन ), २.१४४- १६०( मूर्ति प्रतिष्ठा उत्सव का विस्तृत वर्णन ), द्र. सुप्रतिष्ठित pratishthaa

References on Pratishtha

प्रतिष्ठानपुर पद्म ६.१८०.२( प्रतिष्ठानपुर की शोभा का वर्णन, प्रतिष्ठानपुर के राजा ज्ञानश्रुति द्वारा रैक्य ऋषि से गीता के षष्ठम् अध्याय के महत्त्व को जानने का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.४२.२३( शिव के स्वेद बिन्दुओं से उत्पन्न मातृकाओं की प्रतिष्ठा का स्थान ), मत्स्य १२.१८( सुद्युम्न/इल द्वारा पुत्र पुरूरवा को प्रतिष्ठानपुर के राज्य पर अभिषिक्त करके इलावृत को जाने का उल्लेख ), वामन २१.३९( राजा संवारण द्वारा तपती कन्या के दर्शन के पश्चात् प्रतिष्ठानपुर को जाने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.९०.२३( पुरुषत्व प्राप्ति के पश्चात् इल द्वारा प्रतिष्ठानपुर की स्थापना ), कथासरित् १.६.८( प्रतिष्ठानपुर में श्रुतार्था व नागकुमार कीर्तिसेन से गुणाढय नामक पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), १.७.५८( देवदत्त द्वारा प्रतिष्ठानपुर में सुशर्मा राजा की कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ७.४.५( राजा विक्रमादित्य का प्रतिष्ठानपुर के राजा नरसिंह से युद्ध ), ७.६.१३( प्रतिष्ठानपुर के द्विज तपोदत्त द्वारा तपस्या से विद्या प्राप्ति का प्रयत्न तथा इन्द्र द्वारा शिक्षा ), ९.१.११७( प्रतिष्ठान नगर के रूपवान् राजा पृथ्वीरूप द्वारा चित्रकारों की सहायता से मुक्तिपुर की रूपवती राजकुमारी रूपलता को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.६.४१७( प्रतिष्ठानपुर के द्विज कमलगर्भ व उसकी २ भार्याओं के जन्म - जन्म में पति - पत्नियां बनने का वृत्तान्त ), द्र. प्रयाग pratishthaanapura/ pratishthanpur

 

प्रतिसञ्चर ब्रह्माण्ड ३.४.३.७( प्रतिसञ्चर काल में तन्मात्राओं के क्रमिक लय का कथन ), वायु १००.१३२/२.३८.१३२( प्रतिसञ्चर प्रलय के ३ भेद ), विष्णु १.२.२५( प्राकृत प्रतिसञ्चर का निरूपण ), ६.३.१( नैमित्तिक आदि ३ प्रकार के प्रतिसञ्चरों का निरूपण ), ६.४.७( नैमित्तिक प्रतिसञ्चर का निरूपण ), ६.८.१( तृतीय प्रतिसञ्चर का कथन ) pratisanchara

 

प्रतिसन्धि वायु ७.२, ६१.१४५( मन्वन्तरों की प्रतिसन्धि के रूप में चतुर्युगों का कथन )

 

प्रतिसर्ग अग्नि १९( प्रतिसर्ग वर्णन नामक अध्याय में दैत्यों की सृष्टि आदि का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३.११३( ३ प्रकार के प्रतिसर्गों का उल्लेख ), भागवत ४.८.५( प्रतिसर्ग के कथन में अधर्म के वंश का कथन ), मत्स्य ५३.६४( पुराणों के ५ लक्षणों में से एक ), वायु १००.१३३( प्रतिसर्ग के समय भूतों की प्रलय का वर्णन ), १०२.४६/२.४०.४६( स्वयम्भु के प्राकृत प्रतिसर्ग का कथन ), विष्णु ६.८.२( पुराण के लक्षणों के रूप में सर्ग आदि लक्षणों के नाम ) pratisarga

 

प्रतिहर्त्ता अग्नि १०७.१४( प्रतीहार - पुत्र, भुव - पिता, नाभि वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६६( प्रतीहार - पुत्र, उन्नेता - पिता, भरत वंश ), २.३.५.९७( छठें गण के मरुतों में से एक ), भागवत ५.१५.५( प्रतीह व सुवर्चला के ३ पुत्रों में से एक, स्तुति - पति, अज व भूमा - पिता, ऋषभ वंश ), मत्स्य १६७.९( विष्णु के उदर से प्रतिहर्त्ता व पोता ऋत्विजों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वराह २१.१७( दक्ष यज्ञ में प्रचेता के प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), वायु ३३.५६( प्रतीहार - पुत्र, उन्नेता - पिता ), विष्णु २.१.३६( प्रतिहार - पुत्र, भव - पिता ) pratihartaa

 

प्रतिहार स्कन्द ५.२.२०( प्रतिहारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अग्नि द्वारा शिव - पार्वती की रति में विघ्न करने पर प्रतिहार नन्दी को शिव का शाप, प्रतिहारेश्वर लिङ्ग की स्थापना ) pratihaara

 

प्रतिहोता मत्स्य ४५.३०( अक्रूर व रत्ना से उत्पन्न ११ प्रतिहोता संज्ञक पुत्रों के नाम ),

 

प्रतीक भागवत ९.२.१८( वसु - पुत्र, ओघवान् - पिता, नृग वंश ), ९.१२.११( प्रतीकाश्व : भानुमान् - पुत्र, सुप्रतीक - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), मत्स्य २२.५८( प्रतीक के भय से भिन्न गोदावरी के स्थान का महत्त्व ), वायु ९९.२८४/२.३७.२८०( प्रतीताश्व : भानुरथ - पुत्र, सुप्रतीत - पिता ), द्र. सुप्रतीक prateeka/ pratika

 

प्रतीची भागवत ११.५.४०( द्रविड देश की नदियों में से एक ), हरिवंश ३.३५.२७( वराह द्वारा प्रतीची दिशा में निर्मित शैलों व नदियों का कथन ),

 

प्रतीति पद्म ५.६७.४०( प्रतापाग्र्य - पत्नी )

 

प्रतीप देवीभागवत २.३.२४( राजा महाभिष द्वारा प्रतीप - पुत्र शन्तनु के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), भागवत ९.१३.१६( प्रतीपक : मरु - पुत्र, कृतिरथ - पिता, निमि वंश ), ९.२२.११( दिलीप - पुत्र प्रतीप के वंश का कथन ), मत्स्य ४७.७५(देवों को हराने हेतु शुक्राचार्य द्वारा महादेvव से अप्रतीप मन्त्र प्राप्ति का उद्योग), ५०.३८( दिलीप - पुत्र, देवापि आदि के पिता ), २७१.७( ध्रुवाश्व - पुत्र, सुप्रतीप - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक, बृहद्बल वंश ), वायु ९९.२३४/२.३७/२२९( प्रतिप : दिलीप - पुत्र प्रतिप के ३ पुत्रों व कुल का कथन ), ९९.४१८/ २.३७.४१२( भविष्य के राजाओं के काल में सप्तर्षियों के प्रतीप नक्षत्र? में होने का उल्लेख ), विष्णु २.८.१९(ब्रह्म सभा से सूर्य की मरीचियों के प्रतीप गमन का उल्लेख),  स्कन्द १.२.७.६०( बालक बक द्वारा  मारकत लिङ्ग को अनायास घृतकुम्भ में डालने से शिव गण प्रतीपपालक बनने तथा प्रतीपपालक का गालव के शाप से बकासुर बनने का वृत्तान्त ) prateepa/ pratipa

 

प्रतीह भागवत ५.१५.३( परमेष्ठी व सुवर्चला - पुत्र प्रतीह के चरित्र की प्रशंसा, सुवर्चला - पति, प्रतिहर्ता आदि ३ पुत्रों के पिता ), द्र. वंश भरत

 

प्रतीहार अग्नि १०७.१४( परमेष्ठी - पुत्र, प्रतिहर्त्ता - पिता, ऋषभ/नाभि वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६५( वही),

 

प्रतोद लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( जीव रथ में शम प्रतोद बनाने आदि का निर्देश ),

 

प्रत्यग्र भागवत ९.२२.६( उपरिचर वसु के पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.८१( उपरिचर वसु के ७ पुत्रों में से एक )

 

प्रत्यङ्गिरा ब्रह्माण्ड २.३.१.२६( अथर्ववेद/ब्रह्मवेद के यज्ञ में प्रत्यङ्गिरस ऋचाओं के साथ आने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.१३६( प्रत्यङ्गिरसों से ऋचाओं( या:/यां कल्पयन्ती इति, खिल ४.५.१) की उत्पत्ति का उल्लेख ), हरिवंश १.३.६५( प्रत्यङ्गिरसजा ऋचाओं के राजर्षि कृशाश्व से प्रकट होने का उल्लेख ) pratyangiraa

 

प्रत्याहार अग्नि ३४९.२( व्याकरण के संदर्भ में अइउण~ आदि प्रत्याहारों के नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.३.१( तन्मात्राओं के क्षय रूपी प्रत्याहार का वर्णन ), ३.४.२.२९३( पृथिवी, जल, तेज आदि आवरणों के प्रत्याहार का वर्णन ), वायु १०.७६/१.१०.७१( ५ सनातन धमो‰ में से एक ), १०.९३/१.१०.८८( प्रत्याहार द्वारा विषयों के दहन का निर्देश ), ११.१८( प्रत्याहार के महत्त्व का कथन ), १०२.१/२.४०.१( महाभूत प्रलय रूपी प्रत्याहार का वर्णन ), १०४.२४/ २.४२.२४( योग के ८ अङ्गों में से एक ), विष्णु ६.७.४५( प्रत्याहार द्वारा इन्द्रियों को वश में करने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८१( प्रत्याहार के महत्त्व का कथन ), स्कन्द ५.२.१३.३०( शिव द्वारा देहस्थ काम का प्रत्याहार द्वारा दहन करने के निश्चय का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.८.७८( प्रत्याहार वत्सर में वीर नारायण और शार्दूलश्री के प्राकट्य का वृत्तान्त ), द्र योग pratyaahaara/ pratyahara

 

प्रत्युत्पन्नमति महाभारत शान्ति १३७.१०( अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति आदि ३ मत्स्यों की धीवर के जाल के प्रति प्रतिक्रिया ), कथासरित् १०.४.१७९( प्रत्युत्पन्नमति, अनागतविधाता आदि ३ मत्स्यों द्वारा धीवर के जाल के प्रति प्रतिक्रिया का कथन ) pratyutpannamati

 

प्रत्युदक पद्म ६.१८८.४१( गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में प्रत्युदकपुर के विप्र तथा उसकी स्वैरिणी स्त्री के जन्मान्तर में शश व शुनी बनने का वृत्तान्त ),

 

प्रत्यूष ब्रह्माण्ड १.२.३५.९४( प्रत्यूष - पुत्र दल का उल्लेख ), २.३.३.२१( वसु के वसु संज्ञक ८ पुत्रों में से एक ), २.३.३.२७( देवल - पिता ), ३.४.३२.१०( कालचक्र के पञ्चकोण पर प्रत्यूष से उत्पन्न ५ कालशक्तियों की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१७.८८( सप्तम वसु, दुर्वासा का रूप,  नानक रूप में अवतरण ), ३.४.१८.७( प्रत्यूष के १३ प्रकार ), मत्स्य ५.२७( प्रत्यूष वसु के पुत्र विभु/देवल का उल्लेख ), २०३.७( प्रत्यूष वसु के पुत्र देवल का उल्लेख ), वायु ६१.८४( प्रत्यूष - पुत्र अचल का उल्लेख ), ६६.२६/२.५.२६( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), विष्णु १.१५.११७( ८ वसुओं में से एक, देवल - पिता ), स्कन्द ७.१.१०८( प्रत्यूष वसु द्वारा स्थापित प्रत्यूषेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), द्र वसुगण pratyuusha/ pratyusha

Comments on Pratyusha

प्रथ द्र. ब्रह्मप्रथ, हरिप्रथ

 

प्रथम ब्रह्माण्ड १.२.२०.२१( सुतल नामक द्वितीय तल में स्थित राक्षसों के पुरों में प्रथम नामक राक्षस के पुर का उल्लेख ), मत्स्य २२७.६६( राजा द्वारा देय प्रथम साहस दण्ड का उल्लेख ), २२७.१७८( प्रथम, मध्यम व उत्तम दण्डों का उल्लेख ), वायु ५०.२०( द्वितीय तल में स्थित राक्षसों के पुरों में प्रथम राक्षस के पुर का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.८४( इन्दीवर व अनिच्छासेन राजकुमार - द्वय के मातामह तथा प्रज्ञासहायक के रूप में प्रथमसङ्गम का उल्लेख ) prathama

 

प्रदक्षिणा गरुड ३.२९.६६(प्रदक्षिणा काल में गरुडान्तर्गत हरि के ध्यान का निर्देश),  वराह १५९+ ( मथुरा प्रदक्षिणा का महत्त्व तथा विधि ), १६४( अन्नकूट परिक्रमा का महत्त्व व विधि ), स्कन्द १.३.१.९.६७( प्रदक्षिणा के ४ अक्षरों का तात्पर्य ), ५.३.१५६.३९( शुक्ल तीर्थ की प्रदक्षिणा से पृथ्वी की प्रदक्षिणा के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.१७.१३६( सूर्य प्रदक्षिणा मन्त्र ) pradakshinaa

 

प्रदीप विष्णु १.८.३०( ज्योत्स्ना - पति ), कथासरित् १२.६.४२०( कमलगर्भ द्विज का प्रदीप्ताक्ष यक्ष के पुत्र दीप्तशिख के रूप में जन्म तथा उसकी २ भार्याओं का अन्य यक्षिणियों के रूप में जन्म ) pradeepa/ pradipa

 

प्रदेश लक्ष्मीनारायण ४.८०.१६( राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में विभिन्न प्रदेशों के निवासियों द्वारा विभिन्न कृत्यों का सम्पादन ) pradesha

 

प्रदोष देवीभागवत ७.३८.३९( प्रदोष व्रत की संक्षिप्त विधि ), भागवत ४.१३.१४( पुष्पार्ण व दोषा के ३ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), स्कन्द १.१.१७.२०८( इन्द्र द्वारा प्रदोष व्रत के प्रभाव से तथा वृद्वा के प्रदोष काल में निद्रा ग्रहण से इन्द्र के वृद्वा की हत्या में सफल होने का कथन ), ३.३.६.५( त्रयोदशी तिथि को सायंकाल का समय, प्रदोष काल में शिव पूजा का महत्त्व, सत्यरथ नृप का वृत्तान्त ), द्र वंश ध्रुव pradosha

 

प्रद्युम्न गरुड ३.१६.७(कृति-पति), ३.२२.७९(वैश्यों में श्रीहरि की प्रद्युम्न नाम से स्थिति), ३.२९.६३(ताम्बूल काल में प्रद्युम्न के ध्यान का निर्देश),  गर्ग ७.२+ ( उग्रसेन के राजसूय हेतु प्रद्युम्न द्वारा दिग्विजय का संकल्प व उद्योग, राजाओं से भेंट प्राप्ति ), ७.२९.१३( प्रद्युम्न के मीनध्वज का उल्लेख ), ७.३०.३०( मानव पर्वत पर प्रद्युम्न की मनु से भेंट, मनु द्वारा प्रद्युम्न की स्तुति ), ७.३८+ ( प्रद्युम्न का हिरण्याक्ष - पुत्र शकुनि से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३९( सनत्कुमार का अंश ), नारद १.६६.९०( प्रद्युम्न की शक्ति प्रीति का उल्लेख ), पद्म ६.१२०.५४( प्रद्युम्न से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ब्रह्म १.९१( शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११२( शंकर हरण आख्यान ), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१९( भानुमान् - पुत्र, मुनि - पिता, मैथिल वंश ), भविष्य ३.४.१४.४९( भगवान् के मुख के तेज से प्रद्युम्न/काम की उत्पत्ति, काम द्वारा ब्रह्माण्ड व शिव का मोहन, शिव के तेज से भस्म होने आदि का वर्णन ), भागवत ४.१३.१६( चाक्षुष मनु व नड्वला के पुत्रों में से एक ), १०.५५( प्रद्युम्न का जन्म, शम्बर द्वारा हरण, शम्बर वध की कथा ), १०.६३( प्रद्युम्न का कार्तिकेय से युद्ध ), ११.३०( प्रद्युम्न का साम्ब से युद्ध ), वराह ११.८४( गौरमुख ऋषि की मणि से उत्पन्न १५ महाशूरों में से एक ), वायु ८९.१९/२.२७.१९( भानुमान् - पुत्र, मुनि - पिता, मैथिल  वंश ), विष्णु ५.२७( षष्ठम् दिवस पर शम्बर द्वारा प्रद्युम्न का हरण, मायावती द्वारा पालन, प्रद्युम्न द्वारा शम्बर के वध की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०८.२१( राम भ्राता भरत के प्रद्युम्नांश तथा प्रद्युम्न रूप होने का उल्लेख ), १.२३७.५( प्रद्युम्न से घ्राण की रक्षा की प्रार्थना ), ३.५२.१३( प्रद्युम्न का वरुण से साम्य? ), ३.१०६.१९( प्रद्युम्न आवाहन मन्त्र ), ३.११९.४( प्रद्युम्न की विवाह काल में पूजा ), ३.१२१.६( दक्षिणापथ में प्रद्युम्न की पूजा का निर्देश ), शिव २.३.१९.४०( काम को भस्म करने के पश्चात् शिव द्वारा काम के कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्र के रूप में जन्म लेने का पूर्वकथन ), स्कन्द २.२.३०.७९( प्रद्युम्न से पश्चिम दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), २.७.९.१४( शिव द्वारा काम को दग्ध करने पर आकाशवाणी द्वारा काम के प्रद्युम्न रूप में रति को प्राप्त होने का उल्लेख ), ४.२.६१.२२१( प्रद्युम्न की मूर्ति के लक्षण व महिमा ), हरिवंश २.६१.५( प्रद्युम्न द्वारा रुक्मी - पुत्री शुभाङ्गी का वरण ), २.७३.२४( पारिजात हरण प्रसंग में प्रद्युम्न का जयन्त से युद्ध ), २.९०.१२( प्रद्युम्न द्वारा भानुमती की निकुम्भ दानव से रक्षा ), २.९२( हंसी द्वारा वज्रनाभ असुर की पुत्री प्रभावती से प्रद्युम्न के रूप की प्रशंसा, प्रद्युम्न का नट वेश में वज्रपुर में आगमन ), २.९३.२९( प्रद्युम्न द्वारा नलकूबृर रूप धारण ), २.९४.१( प्रद्युम्न का प्रभावती से गान्धर्व विवाह ), २.१०४.२( सनत्कुमार का रूप ), २.१०४( शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग ), महाभारत शान्ति ३३९.३८( चतुर्व्यूह के अन्तर्गत प्रद्युम्न के मन होने का कथन ), योगवासिष्ठ ४.३२.१२( कश्मीर में अधिष्ठान पर्वत के प्रद्युम्न शिखर पर व्याल दानव के कलविङ्क बनने व मुक्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.१८५.१५७( शिव द्वारा कामदाह के पश्चात् काम के हिरण्या - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने तथा शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण आदि का वृत्तान्त ), १.२६५.१२( प्रद्युम्न की शक्ति धी का उल्लेख ), ३.७१.४५( प्रद्युम्न के जगत की पालक शक्ति होने का कथन ), कथासरित् १२.६.१०९( पाताल में अनिरुद्ध की रक्षा हेतु प्रद्युम्न द्वारा शारिका देवी की स्तुति करने का कथन ), १२.३०.५( शोभावती पुरी के राजा प्रद्युम्न के राज्य में मृत द्विज बालक के शरीर में योगी के प्रवेश का वृत्तान्त ), द्र. वंश ध्रुव pradyumna

 

प्रद्योत ब्रह्माण्ड २.३.७.१२४( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.१.३.९६+ ( क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा पितृहन्ता म्लेच्छों के नाश के लिए यज्ञ का वर्णन ), ३.३.५.१३( राजा अनङ्गपाल - पुत्र, जयचन्द्र - सेनानी ), ३.३.६.४५( पृथ्वीराज - अग्रज धुन्धुकार द्वारा वध ), भागवत १२.१.३( मन्त्री शुनक द्वारा स्वामी पुरञ्जय को मार कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का उल्लेख, पालक - पिता ), वायु ६९.१५६/२.८.१५१( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), ९९.३१०/२.३७.३०४( मुनिक द्वारा स्वामी की हत्या कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का कथन, पालक - पिता ), विष्णु ४.२४.२( मुनिक मन्त्री द्वारा स्वामी रिपुञ्जय की हत्या कर स्वपुत्र प्रद्योत को राजा बनाने का उल्लेख, बलाक - पिता, प्रद्योत राजाओं द्वारा राज्य का उल्लेख ), कथासरित् ३.१.१९( मगधराज प्रद्योत की कन्या पद्मावती को वत्सराज हेतु प्राप्त करने का उद्योग ) pradyota

 

प्रद्वेषी लक्ष्मीनारायण २.३१.८५( दीर्घतमा - पत्नी प्रद्वेषी द्वारा पति के त्याग आदि का कथन )

 

प्रधा मार्कण्डेय १०४.९/१०१.९( दक्ष की १३ पुत्रियों में से एक, कश्यप - भार्या, यादसगणों/पतङ्गों की माता) pradhaa

 

प्रधान गर्ग १.१६.२५( काल की शक्ति प्रधान का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.३.९( सर्ग से पूर्व अव्यक्त कारण सदसदात्मक प्रधान व प्रकृति का कथन, सर्ग काल में प्रधान के गुण भाव से भासमान होने आदि का कथन ), १.१.४.१( विकारों के समाप्त होने पर तथा गुणों की साम्यावस्था पर प्रधान व पुरुष की साधर्म्य रूप में प्रतिष्ठा का उल्लेख ), १.१.५.१०३( प्रधान के प्रकृति माया होने का उल्लेख ), १.२.२१.२८( प्रधान अव्ययात्मा से महान् के आवृत होने आदि का कथन ), २.३.४३.४( प्रधान के विशेषण ), ३.४.४.१५( सृष्टि से पूर्व सब कार्य बुद्धि पूर्व प्रधान द्वारा होने का कथन ), ३.४.४.२०( सृष्टि के पश्चात् प्रधान के योगदान का कथन ), भागवत १०.३८.१५( प्रधान व पुरुष के रूप में कृष्ण व बलराम का उल्लेख ), १०.३८.३२( वही), मत्स्य ३.१५( गुणों की साम्यावस्था के प्रकृति, प्रधान, अव्यक्त आदि नाम ), वायु ५.११( महेश्वर द्वारा प्रधान व पुरुष रूपी अण्ड में प्रवेश करके क्षोभ उत्पन्न करने तथा उससे रजोगुण की उत्पत्ति का कथन ), १०२.१३३/२.४०.१३३( प्रधानिकी सृष्टि का निरूपण ), १०३.१४/२.४१.१४( प्रधान के सब कार्य बुद्धिपूर्व होने तथा क्षेत्रज्ञ द्वारा अबुद्धिपूर्व उन गुणों को नियन्त्रित करने का कथन ),१०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), शिव ७.१.९.१८( प्रलय के पश्चात् तमोरूप प्रधान व सत्त्व रूप पुरुष के समत्व में स्थित होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.७१.२६( प्रधान पुरुष की उत्पत्ति तथा प्रधान पुरुष से अहंकार की उत्पत्ति का कथन ) pradhaana/ pradhana

 

प्रधिमि शिव ३.५.२४( १९वें द्वापर में शिव अवतार जटीमाली के पुत्रों में से एक ),

 

प्रपञ्चबुद्धि कथासरित् ७.४.४३( राजा विक्रमादित्य द्वारा भिक्षु प्रपञ्चबुद्धि के वध का वृत्तान्त )

 

प्रपा भविष्य २.१.१७.६( प्रपा कर्म में अग्नि का नाम नाग ), ४.१७२( प्रपा/पौंसला दान विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२१.११( प्रपा रक्षण से नैर्ऋत लोक की प्राप्ति ) prapaa

 

प्रपितामह ब्रह्माण्ड १.२.२८.१७( पितरों में पञ्चाब्द रूप के प्रपितामह तथा देव होने का उल्लेख ), वायु ३१.३३( कालात्मा प्रपितामह के विशेषणों का कथन ), ३१.३८( भास्कर के पितामह तथा चन्द्र के प्रपितामह होने का कथन ), ३१.४५( वायु के लोकात्मा प्रपितामह होने का कथन ), ३१.५३( भव/रुद्र के भूतात्मा प्रपितामह होने का कथन ), १०६.५६/२.४४.५६( गया में शिला को स्थिर करने के लिए प्रपितामह का शिला पर ५ रूपों में स्थित होने का कथन ) prapitaamaha/ prapitamaha

 

प्रबल भागवत २.९.१४( विष्णु के पार्षदों में से एक ), ८.२१.१६( विष्णु के पार्षदों में से एक, असुरों की सेना का संहार ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ), कथासरित् ८.२.३७९( प्रभास असुर के प्रबल नामक दैत्य का अवतार होने का उल्लेख ), ८.३.२३६( नमुचि असुर के प्रबल और प्रभास रूप में जन्म लेने का कथन ), ८.७.४६( वही), prabala

 

प्रबुद्ध भागवत ५.४.११( ऋषभ के भागवत धर्म का दर्शन करने वाले ९ पुत्रों में से एक ), ११.३.१८( ऋषभ - पुत्र प्रबुद्ध द्वारा निमि को कर्म सम्बन्धी उपदेश ) prabuddha

 

प्रबोधन नारद १.१२०.५१( प्रबोधिनी एकादशी व्रत विधि ), भागवत १०.८७.१२( शायित परमात्मा का श्रुतियों द्वारा प्रबोधन ), स्कन्द २.४.३३.१( कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२६८( राजा अमोहाक्ष द्वारा प्रबोध गुरु की सेवा, गुरु द्वारा चतुर्भुज रूप का दर्शन देना तथा उपदेश का वर्णन ) prabodhana

 

प्रभञ्जन गणेश २.१०.३३( वायु द्वारा महोत्कट गणेश का प्रभञ्जन नामकरण ), पद्म १.१८.२५८( मृगी के शाप से प्रभञ्जन का व्याघ्र| बनना, नन्दा गौ से संवाद पर मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३३( वाली के सहायक प्रमुख वानरों में से एक ), वायु ४४.१८( प्रभञ्जना : केतुमाल देश की प्रमुख नदियों में से एक ), स्कन्द २.४.४टीका ( मृगी के शाप से प्रभञ्जन का व्याघ्र| बनना, नन्दा गौ से संवाद से मुक्ति ), ६.११३.३०( आनर्त अधिपति का पूर्व जन्म में नाम, प्रभञ्जन - पुत्र का अनिष्ट ग्रहों में उत्पन्न होना, शान्ति कर्म हेतु अग्नि कुण्ड की स्थापना आदि का वृत्तान्त ) prabhanjana

 

प्रभव ब्रह्माण्ड २.३.१.९०( भृगु व दिव्या के १२ भृगु देव पुत्रों में से एक , मत्स्य १७१.४३( धर्म व साध्या के पुत्रों में से एक ), १९५.१३( भृगु व दिव्या के १२ भृगु देव पुत्रों में से एक ), वराह १०.७९( दुर्जय व सुकेशी - पुत्र ), वायु ६६.३२/२.५.३२( प्रभवान् : धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक १० पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१५( सुकेशी व दुर्जय - पुत्र ) prabhava

 

प्रभविष्णु भागवत २.४.१८( विष्णु की संज्ञाओं में से एक )

 

प्रभा अग्नि २७३.३( सूर्य की ३ पत्नियों में से एक, रेवन्त व प्रभात - माता ), गणेश २.३२.१३( प्रियव्रत - भार्या, पद्मनाभि - माता ), २.३३.२०( कालक्रम से प्रभा का निष्प्रभ आदि होना, सपत्ना के पुत्र को विष पिलाना ), देवीभागवत ९.१.१२०( तेज की २ भार्याओं में से एक ), नारद १.६६.९२( शार्ङ्गी विष्णु की शक्ति प्रभा का उल्लेख ), १.९१.८५( सद्योजात शिव की सप्तम कला ), पद्म १.८.३७( विवस्वान् की ३ पत्नियों में से एक, प्रभात - माता ), १.२०.१०६( प्रभा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५८( प्रभा गोपी का राधा के भय से  सूर्य मण्डल में अदृश्य होना, प्रभा के तेज का ब्रह्माण्ड में वितरण ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२३( स्वर्भानु - कन्या, नहुष - माता ), २.३.६७.१( आयु व स्वर्भानु - कन्या प्रभा से उत्पन्न नहुष आदि ५ पुत्रों के नाम ), भविष्य १.७९.१८( सूर्य - पत्नी संज्ञा के ३ नामों में से एक ), भागवत ४.१३.१३( पुष्पार्ण - पत्नी, प्रात: आदि ३ पुत्रों की माता ), मत्स्य ६.२१( स्वर्भानु असुर - कन्या ), ११.२( विवस्वान् की ३ पत्नियों में से एक, प्रभात - माता ), १२.३९( सगर की २ भार्याओं में से एक, षष्टि सहस्र पुत्रों की माता, पुत्रों के भस्म होने का वृत्तान्त ), १३.५२( सूर्यबिम्ब में सती की प्रभा नाम से स्थिति का उल्लेख ), २३.२५( स्वपतियों को त्याग चन्द्रमा की सेवा में जाने वाली ९ देवियों में से एक ), १०१.५४( प्रभा व्रत ), २८४.१५( सूर्य के समक्ष पृथ्वी के प्रभा नाम का उल्लेख ), वायु ५०.११२( सौरी प्रभा के रात्रि में सूर्य से निकल कर अग्नि में प्रवेश करने का कथन ), ६८.२२/२.७.२२( स्वर्भानु - कन्या, नहुष - माता ), ७०.७१/२.९.७१( स्वर्भानु द्वारा सूर्य को ग्रस लेने पर सोम द्वारा लोक में प्रभा फैलाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१( वक्ष में प्रभा की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६३.४२( बर्बरीक द्वारा बहुप्रभा नगरी में दैत्यों के निग्रह का कथन ), ४.२.५३.१२५( काशी में प्रभामयेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ),५.३.९८.३( सूर्य - पत्नी, दुर्भगा, प्रभासेश लिङ्ग की स्थापना से सौभाग्य प्राप्ति ), ५.३.१५९.४५( हिता नामक नाडियों के मध्य शशिप्रभा का उल्लेख ), ५.३.१९८.९०( सूर्य बिम्ब में देवी की प्रभा नाम से स्थिति होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३.९१( स्वर्भानु असुर - कन्या ), १.२८.१( स्वर्भानु - पुत्री, आयु - पत्नी, नहुष, रजि आदि की माता ), ३.७१.५१( वामन के विराट् रूप में ज्योतियों/नक्षत्रों के प्रभाएं होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.१०६( अग्नि द्वारा चित् देह की चिर प्रभा सोम को प्रकट करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३०५.९( ब्रह्मा द्वारा सनत्कुमारादि पुत्रों के लिए प्रभा आदि कन्याओं को उत्पन्न करना, सनत्कुमारादि की अस्वीकृति पर प्रभा आदि द्वारा अधिक मास त्रयोदशी व्रत के चीर्णन से दिव्य लोक की प्राप्ति ), १.४४६.५२( चन्द्रमा द्वारा अपहृत छाया तारा के प्रभा बनने का कथन ), २.५९.५४( दान के अभाव में प्रभानाथ विप्र का प्रेत बनना, प्रेत द्वारा वणिक् को प्रसन्न करना, वणिक् द्वारा प्रेत की मुक्ति का उद्योग ), २.१६१.७०( प्रभा के सूर्य की दासी होने का उल्लेख ), ३.१२२.१०८( सूर्य द्वारा पुत्री व्रत के चीर्णन से प्रभा पुत्री की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.८०.२( कृष्ण द्वारा स्वपत्नियों पारवती व प्रभा सहित राजा नागविक्रम के यज्ञ में गमन का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.३३( फलभूति विप्र द्वारा आदित्यप्रभ राजा से धन प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.६.४८( राजा आदित्यप्रभ की रानी कुवलयावली द्वारा राजा को विनायक आदि की पूजा के महत्त्व का वर्णन तथा स्वयं को कालरात्रि की शिष्या बताना ), ३.६.१८६( कुवलयावली द्वारा राजा को फलभूति का मांस खाने को प्रेरित करना, भूल से स्वपुत्र के मांस का भक्षण करने का वृत्तान्त ), १०.३.८७( पद्मकूट विद्याधर की पुत्री मनोरथप्रभा द्वारा सोमप्रभ को स्ववृत्तान्त का वर्णन ), द्र. अग्निप्रभा, कनकप्रभा, गौरप्रभा, चन्द्रप्रभा, देवप्रभा, बिल्वप्रभा, रत्नप्रभा, वज्रप्रभा, विद्युत्प्रभा, शशिप्रभा, शङ्खप्रभा, सुप्रभा, सोमप्रभा, स्वयंप्रभा, हेमप्रभा, हरिहरप्रभा prabhaa